Basanti Ben Raised Voice Against Child Marriage In Uttarakhand, Before Getting “Shakti Samman” For The Kosi River, She Got Women’s Power Respect

उत्तराखंड की रहने वाली बसंती बेन 12 साल की उम्र में विधवा हो गईं। जब वे बड़ी हुईं तो सबसे पहले ये जाना कि शिक्षा का महत्व क्या है। इसीलिए टीचर बनने का फैसला किया।
फिलहाल बसंती बेन बाल विवाह के खिलाफ अभियान चला रही हैं ताकि उनकी तरह कोई कम उम्र में विधवा होने का दर्द न सहने पाए। इसी साल उन्हें राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने नारी शक्ति सम्मान देकर सम्मानित किया है।
दो साल पहले उत्तराखंड हाई कोर्ट ने बाल विवाह के खिलाफ चाइल्ड मैरिज एक्ट 2006 लागू किया है। 52 साल की बसंती बेन के लिए ये खबर उनके जीवन को नई दिशा देने वाली रही। उन्होंने कानून का सहारा लेकर लोगों को बाल विवाह के खिलाफ समझाना शुरू किया।

वे अल्मोड़ा के कसौनी गांव में जागरूकता अभियान चलाती हैं।
वे एक टीचर हैं और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने का हर संभव प्रयास कर रही हैं। वे अल्मोड़ा के कसौनी गांव में जागरूकता अभियान चलाती हैं। वे घर-घर जाकर पेरेंट्स को बाल विवाह से होने वाले नुकसान बताती हैं। बसंती कहती है जब मैं अपने जागरूकता अभियान के जरिये बाल विवाह रोकने में सफल रहती हूं तो मुझे लगता है जैसे यह मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि है।

बसंती एक बार जो ठान लेती है, वो करके रहती है।
बसंती के इस प्रयास के लिए अल्मोड़ा और आसपास बसे गांव के लोग उनकी तारीफ करते नहीं थकते। अल्मोड़ा में रहने वाले अमीत उप्रेति के अनुसार बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाने वाली बसंती बेन अब तक कई बच्चियों को शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सेवाएं भी उपलब्ध करा चुकी हैं। बसंती की सहेली और उनके मिशन में साथ देने वाली पार्वती गोस्वामी कहती हैं – बसंती एक बार जो ठान लेती है, वो करके रहती है। वह बच्चियों के विकास के लिए हर संभव प्रयास कर रही हैं। पर्वतों पर रहने वाले लोगों के बीच बंसती की कोशिश से बाल विवाह के मामलों में कमी आई है।

राष्ट्रपति से नारी शक्ति सम्मान प्राप्त करते हुए बसंती।
इससे पहले बसंती कोसी नदी के लिए वनरोपण अभियान भी चला चुकी हैं। उनका कहना है गंगोत्री और यमुनोत्री नदी सूख रही हैं। ऐसे में मुझे लगा कि पानी का मुख्य स्रोत कोसी नदी को खत्म होने से बचाना चाहिए। बसंती ने 200 महिलाओं का समुह तैयार किया जिसे ”महिला मंगल दल” नाम दिया।

उनके कामों को देहरादून के पर्यावरणविद रवि चोपड़ा ने भी सराहा है।
इस समुह की महिलाएं पौधों को लगाने के साथ ही गांव की महिलाओं को पर्यावरण बचाने के लिए प्रोत्साहित भी करती हैं। उन्होंने लोगों को ओक के पेड़ लगाने के लिए प्रेरित किया ताकि जमीन के पानी को बहने से रोका जा सके।
उनके प्रयासों की वजह से यह क्षेत्र आज ओक और कफाल के पेड़ों से लहलहा रहा है। वे प्राकृतिक तरीकों का उपयोग करके पानी बचाने के प्रति लोगाें को जागरूक कर रही हैं। उनके कामों को देहरादून के पर्यावरणविद रवि चोपड़ा ने भी सराहा है। वे कहते है हमें समाज की भलाई के लिए ऐसे ही लोगों की जरूरत है।
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