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You are here: Home / International / Expectation To Change Us Stance On Wto Breaks, Shock To China – डब्ल्यूटीओ पर अमेरिका का रुख बदलने की उम्मीद टूटी, चीन को झटका

Expectation To Change Us Stance On Wto Breaks, Shock To China – डब्ल्यूटीओ पर अमेरिका का रुख बदलने की उम्मीद टूटी, चीन को झटका

February 24, 2021Leave a Comment

यूएस और चीन का झंडा
– फोटो : पीटीआई


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अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन ने चीन की उम्मीदों पर तगड़ा प्रहार किया है। उसने ये संभावना फिलहाल खत्म कर दी है कि नया अमेरिकी प्रशासन विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में चीन के प्रति नरम रुख अख्तियार करेगा। उसने साफ कर दिया है कि इस वैश्विक मंच पर पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने जो रणनीतियां अपनाई थीं, उन्हें आगे भी जारी रखा जाएगा। हालांकि आलोचकों का कहना है कि ऐसा करके बाइडन प्रशासन ने ये उम्मीद भी तोड़ दी है कि विश्व व्यापार के संचालक के रूप में डब्ल्यूटीओ की पुरानी भूमिका उसके कार्यकाल में बहाल होगी।

डब्ल्यूटीओ में बाइडन प्रशासन ने कहा है कि वह हांगकांग से होने वाले निर्यात को ‘मेड इन चाइना’ मानना जारी रखेगा। साथ ही उसने कहा है कि डब्ल्यूटीओ को इस मामले में दखल देने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि इस संगठन के नियम हर देश को इजाजत देते हैं कि वे अपने ‘अनिवार्य सुरक्षा हितों’ की सुरक्षा करें। अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने कहा- हांगकांग के मामले में स्थिति यह है कि चीन अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन गया है। उसने कहा- राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मसलों पर फैसला डब्ल्यूटीओ में हो, यह उचित नहीं है।

लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि व्यापार संबंधी कदमों को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ना एक नया रुझान है। 2016 के पहले ऐसा होने की मिसाल नहीं मिलती। अब अगर अमेरिका इस रास्ते पर चल रहा है, तो दूसरे देश भी ये तरीका अपना सकते हैं। इससे डब्ल्यूटीओ का औचित्य ही खतरे में पड़ जाएगा। विश्लेषकों ने कहा है कि बाइडन प्रशासन के इस रुख से यह जाहिर होता है कि चीन के खिलाफ ट्रंप के समय छेड़ा गया व्यापार युद्ध अमेरिका की एक दीर्घकालिक रणनीति बन गया है।

पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने अमेरिका में शीत युद्ध के दौर में बने एक कानून का सहारा लेकर 2018 में चीन से होने वाले स्टील और एल्यूमीनियम के आयातों पर अतिरिक्त शुल्क लगा दिए थे। इसके बाद कनाडा, यूरोपियन यूनियन और चीन सहित अमेरिका के कई व्यापार साझेदार देश इस मामले को डब्ल्यूटीओ में ले गए। इस मुद्दे पर इसी साल डब्ल्यूटीओ का फैसला आने की उम्मीद है। अमेरिका ने जिस कानून के आधार पर ये प्रतिबंध लगाए हैं, वह तब बना था, जब डब्ल्यूटीओ का गठन नहीं हुआ था।

अमेरिका के इस कदम के बाद सऊदी अरब, भारत, रूस और कुछ अन्य देशों ने भी डब्ल्यूटीओ के राष्ट्रीय सुरक्षा प्रावधान को आधार बनाकर व्यापार संबंधी कदम उठाए। इससे डब्ल्यूटीओ की पूरी व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। जो बाइडन ने अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान वादा किया था कि वे जीते तो दुनिया में बहुपक्षीय मंचों को मजबूत करेंगे। इसलिए उम्मीद थी कि वे ट्रंप के दौर में उठाए गए कदमों का डब्ल्यूटीओ में समर्थन नहीं करेंगे।

अमेरिका की आपत्तियों के बावजूद डब्ल्यूटीओ हांगकांग के मामले की जांच विशेषज्ञों के दल से करवा रहा है। ये विशेषज्ञ मसले पर विचार-विमर्श के बाद अपना फैसला देंगे। डब्ल्यूटीओ के इस रुख को देखते हुए ट्रंप प्रशासन ने डब्ल्यूटीओ की अपीलीय संस्था में सदस्यों की नियुक्ति रोक रखी थी। अब बाइडन प्रशासन ने कहा है कि वह भी इन नियुक्तियों के लिए अपनी सहमति नहीं देगा। उसने कहा कि अपीलीय संस्था के कामकाज को लेकर उसकी चिंताएं दूर नहीं हुई हैं। डब्ल्यूटीओ की अपीलीय संस्था एक सात सदस्यों की समिति रही है, जो 2019 तक सभी तरह के व्यापार विवादों पर निर्णय करती थी। लेकिन 31 दिसंबर 2019 को इस संस्था के सदस्यों के रिटायर होने के बाद अमेरिका ने नए सदस्यों की नियुक्ति रोक रखी है।

विशेषज्ञों का कहना है कि बाइडन प्रशासन के ताजा रुख से यह साबित हो गया है कि डब्ल्यूटीओ की अपीलीय संस्था को लेकर ट्रंप प्रशासन ने जो आपत्तियां जताई थीं, उन पर अमेरिका के दोनों प्रमुख दलों में आम सहमति बन चुकी है। अपीलीय संस्था के सक्रिय ना रहने के कारण डब्ल्यूटीओ में किसी अपील पर फैसले की संभावना फिलहाल नहीं है। इसका नतीजा यह है कि कोई देश खुद से संबंधित किसी विवाद को वीटो कर उसे गतिरोध में डाल सकता है। इससे डब्ल्यूटीओ के औचित्य पर सवाल खड़े हो रहे हैं। जानकारों के मुताबिक सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जिस संस्था को खड़ा करने में अमेरिका ने सबसे बड़ी भूमिका निभाई, अब वही उसे लाचार करने में सबसे बड़ा रोल निभा रहा है।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रशासन ने चीन की उम्मीदों पर तगड़ा प्रहार किया है। उसने ये संभावना फिलहाल खत्म कर दी है कि नया अमेरिकी प्रशासन विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में चीन के प्रति नरम रुख अख्तियार करेगा। उसने साफ कर दिया है कि इस वैश्विक मंच पर पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने जो रणनीतियां अपनाई थीं, उन्हें आगे भी जारी रखा जाएगा। हालांकि आलोचकों का कहना है कि ऐसा करके बाइडन प्रशासन ने ये उम्मीद भी तोड़ दी है कि विश्व व्यापार के संचालक के रूप में डब्ल्यूटीओ की पुरानी भूमिका उसके कार्यकाल में बहाल होगी।

डब्ल्यूटीओ में बाइडन प्रशासन ने कहा है कि वह हांगकांग से होने वाले निर्यात को ‘मेड इन चाइना’ मानना जारी रखेगा। साथ ही उसने कहा है कि डब्ल्यूटीओ को इस मामले में दखल देने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि इस संगठन के नियम हर देश को इजाजत देते हैं कि वे अपने ‘अनिवार्य सुरक्षा हितों’ की सुरक्षा करें। अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल ने कहा- हांगकांग के मामले में स्थिति यह है कि चीन अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन गया है। उसने कहा- राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मसलों पर फैसला डब्ल्यूटीओ में हो, यह उचित नहीं है।

लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि व्यापार संबंधी कदमों को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ना एक नया रुझान है। 2016 के पहले ऐसा होने की मिसाल नहीं मिलती। अब अगर अमेरिका इस रास्ते पर चल रहा है, तो दूसरे देश भी ये तरीका अपना सकते हैं। इससे डब्ल्यूटीओ का औचित्य ही खतरे में पड़ जाएगा। विश्लेषकों ने कहा है कि बाइडन प्रशासन के इस रुख से यह जाहिर होता है कि चीन के खिलाफ ट्रंप के समय छेड़ा गया व्यापार युद्ध अमेरिका की एक दीर्घकालिक रणनीति बन गया है।

पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने अमेरिका में शीत युद्ध के दौर में बने एक कानून का सहारा लेकर 2018 में चीन से होने वाले स्टील और एल्यूमीनियम के आयातों पर अतिरिक्त शुल्क लगा दिए थे। इसके बाद कनाडा, यूरोपियन यूनियन और चीन सहित अमेरिका के कई व्यापार साझेदार देश इस मामले को डब्ल्यूटीओ में ले गए। इस मुद्दे पर इसी साल डब्ल्यूटीओ का फैसला आने की उम्मीद है। अमेरिका ने जिस कानून के आधार पर ये प्रतिबंध लगाए हैं, वह तब बना था, जब डब्ल्यूटीओ का गठन नहीं हुआ था।

अमेरिका के इस कदम के बाद सऊदी अरब, भारत, रूस और कुछ अन्य देशों ने भी डब्ल्यूटीओ के राष्ट्रीय सुरक्षा प्रावधान को आधार बनाकर व्यापार संबंधी कदम उठाए। इससे डब्ल्यूटीओ की पूरी व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। जो बाइडन ने अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान वादा किया था कि वे जीते तो दुनिया में बहुपक्षीय मंचों को मजबूत करेंगे। इसलिए उम्मीद थी कि वे ट्रंप के दौर में उठाए गए कदमों का डब्ल्यूटीओ में समर्थन नहीं करेंगे।

अमेरिका की आपत्तियों के बावजूद डब्ल्यूटीओ हांगकांग के मामले की जांच विशेषज्ञों के दल से करवा रहा है। ये विशेषज्ञ मसले पर विचार-विमर्श के बाद अपना फैसला देंगे। डब्ल्यूटीओ के इस रुख को देखते हुए ट्रंप प्रशासन ने डब्ल्यूटीओ की अपीलीय संस्था में सदस्यों की नियुक्ति रोक रखी थी। अब बाइडन प्रशासन ने कहा है कि वह भी इन नियुक्तियों के लिए अपनी सहमति नहीं देगा। उसने कहा कि अपीलीय संस्था के कामकाज को लेकर उसकी चिंताएं दूर नहीं हुई हैं। डब्ल्यूटीओ की अपीलीय संस्था एक सात सदस्यों की समिति रही है, जो 2019 तक सभी तरह के व्यापार विवादों पर निर्णय करती थी। लेकिन 31 दिसंबर 2019 को इस संस्था के सदस्यों के रिटायर होने के बाद अमेरिका ने नए सदस्यों की नियुक्ति रोक रखी है।

विशेषज्ञों का कहना है कि बाइडन प्रशासन के ताजा रुख से यह साबित हो गया है कि डब्ल्यूटीओ की अपीलीय संस्था को लेकर ट्रंप प्रशासन ने जो आपत्तियां जताई थीं, उन पर अमेरिका के दोनों प्रमुख दलों में आम सहमति बन चुकी है। अपीलीय संस्था के सक्रिय ना रहने के कारण डब्ल्यूटीओ में किसी अपील पर फैसले की संभावना फिलहाल नहीं है। इसका नतीजा यह है कि कोई देश खुद से संबंधित किसी विवाद को वीटो कर उसे गतिरोध में डाल सकता है। इससे डब्ल्यूटीओ के औचित्य पर सवाल खड़े हो रहे हैं। जानकारों के मुताबिक सबसे बड़ी विडंबना यह है कि जिस संस्था को खड़ा करने में अमेरिका ने सबसे बड़ी भूमिका निभाई, अब वही उसे लाचार करने में सबसे बड़ा रोल निभा रहा है।

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Filed Under: International Tagged With: biden administration, china, geneva, joe biden, us policy, World Hindi News, World News in Hindi, wto, अमेरिका की नीति, चीन, जो बाइडन, डब्ल्यूटीओ, बाइडन प्रशासन

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