उसी कानून में यह प्रावधान भी है कि अगर कोई अधिकारी, सरकार के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं करता है तो उसके खिलाफ भी सख्त कार्रवाई हो सकती है। इसमें सात साल तक की कैद और जुर्माना, दोनों का प्रावधान है। इतना ही नहीं, संबंधित सोशल मीडिया प्लेटफार्म यदि 48 घंटे के भीतर केंद्र सरकार के निर्देशों को नहीं मानता है तो वह कानूनी शिकंजे में फंस सकता है। केंद्र सरकार को ट्विटर हैशटैग #मोदीप्लानिंगफार्मरजेनोसाइड, को लेकर सबसे ज्यादा आपत्ति रही है। इस ट्वीट को ढाई सौ से ज्यादा हैंडलस के जरिए आगे बढ़ाया जा रहा था।
किसान आंदोलन पर नजर रख रही केंद्रीय सुरक्षा एवं जांच एजेंसियां से जुड़े एक अधिकारी ने कहा, सभी एजेंसियों को इस बाबत विशेष दिशानिर्देश जारी किए थे। विभिन्न एजेंसियों ने ट्विटर से संबंधित कई तरह की रिपोर्ट आईटी विभाग तक पहुंचाई हैं। पिछले दो सप्ताह में 1300 से ज्यादा ऐसे ट्विटर हैंडल देखे गए हैं, जिन पर हिंसा भड़काने वाली सामग्री को ट्रेंड कराया जा रहा था। आधे से ज्यादा अकाउंट ऐसे थे, जिन्हें बंद करने के लिए ट्विटर ने इंकार कर दिया था।
इसके अलावा भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69ए के तहत उस प्रावधान का भी पूरी तरह से पालन नहीं किया गया, जिसमें यह कहा गया है कि संबंधित कंपनी को 48 घंटे के भीतर विवादित सामग्री हटानी होगी। गणतंत्र दिवस से एक दिन पहले और उसके बाद लगातार ट्विटर को आगाह किया जाता रहा है। आईटी विभाग के द्वारा सबसे पहले पाकिस्तान में चल रहे 1178 ट्विटर हैंडल को बंद करने के लिए कहा गया था। लेकिन ट्विटर ने सारे अकाउंट बंद नहीं किए।
बुधवार को ट्विटर के अधिकारियों के साथ हुई बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर किसान आंदोलन में भड़काने वाले संदेश ट्रेंड करा रहे अकाउंट्स पर कार्रवाई करने की बात कही गई थी। इस मामले में ट्विटर को सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले की जानकारी भी दी गई। इसमें सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि केंद्र सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में अपनी तरफ से इंटरनेट वेबसाइट को ब्लॉक करने की शक्ति इस्तेमाल कर सकती है। सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय सुरक्षा को, व्यक्तिगत निजता से ऊपर माना था।
आईटी विभाग के सचिव के साथ हुई बैठक में ट्विटर का कहना था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ख्याल रखते हुए जो अकाउंट डिलीट होने लायक थे, उन पर कार्रवाई कर दी गई है। सरकार ने जो सूची दी थी, उसमें आधे अकाउंट बंद हो चुके हैं। ऐसे मामलों में वे लोग कोर्ट भी जा सकते हैं, जिनका अकाउंट बंद किया गया है। दूसरी तरफ, आईटी सचिव अजय प्रकाश का कहना था कि ऐसे विवादित हैशटैग से कोई सामग्री आगे बढ़ाना गलत है, जो देश में हिंसा को बढ़ावा देती हो। इतना ही नहीं, ट्विटर के अधिकारियों को यह भी कहा गया कि वे कैपिटल हिल और लालकिला, इन दोनों घटनाओं को एक जैसी नजर से नहीं देख रहे हैं।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारी का कहना है कि आईटी विभाग, तय कानूनी प्रक्रिया के तहत काम कर रहा है। इसके बाद भी अगर ट्विटर नहीं मानता है तो कार्रवाई हो सकती है। आईटी एक्ट की धारा में सात वर्ष की कैद का प्रावधान है। चीनी एप जब बंद किए गए तो संबंधित कंपनियों ने सरकार से गुहार लगाई थी कि ऐसा न किया जाए। उन्हें भी साफतौर पर बता दिया गया था कि राष्ट्र विरोधी गतिविधि चाहे वो किसी भी प्लेटफार्म पर हो, उसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। इस मामले में कानूनी मंत्रालय की राय ली जा रही है।
हालांकि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69ए में यह बात लिखी है कि कोई अधिकारी, केंद्र सरकार के आदेशों को नहीं मानता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। सजा और जुर्माना, दोनों का प्रावधान है। शुक्रवार तक कानून मंत्रालय की सलाह मिल जाएगी। उसके बाद ट्विटर के खिलाफ कार्रवाई संभव है। अगर इस मामले में गिरफ्तारी करनी पड़ी तो सरकार पीछे नहीं हटेगी।
सोशल मीडिया प्लेटफार्म और साइबर एक्सपर्ट रक्षित टंडन का कहना है कि इस मामले में दो पहलू हैं। अगर इससे से कोई अपराध हो रहा है तो उस पर फौरन रोक लगाई जाए। फेक न्यूज है तो वह भी एक चैलेंज है। हर देश में कानून अलग होते हैं। वह अपनी निजता और क्षेत्र का हवाला देता है। दूसरी तरफ कंपनी है, जो अपने रेवेन्यू को देखती है। बोलने की आजादी पर रोक नहीं लगाई जा सकती, बशर्ते वह किसी देश के लिए हानिकारक न हो। उस अभिव्यक्ति का लक्ष्य तोड़फोड़ वाला न हो और सामग्री में भी कोई अनलॉफुल कंटेंट न हो।
अगर कई बार सरकार को लगता है कि लोग, अभिव्यक्ति की आजादी का गलत फायदा उठा रहे हैं तो वह कार्रवाई के लिए आगे आती है। संबंधित कंपनी को भी ऐसे मामलों में बहुत सावधानी से कदम आगे रखना चाहिए। सभी एजेंसियों की ये शिकायत रहती है कि सोशल मीडिया प्लेटफार्म, सूचना देने या किसी यूजर के खिलाफ कार्रवाई करने में देरी करते हैं। समय पर जानकारी नहीं मिल पाती। जबकि नियमों में 48 घंटे की बात कही गई है, लेकिन कंपनियां इसकी कोई परवाह नहीं करती। ट्विटर को यहां पर सोच समझकर निर्णय लेना है। उसे कारोबार भी करना है तो दूसरी तरफ एक लोकतांत्रिक देश के कानूनों का पालन भी करना है। इन सबके बीच संतुलन रखते हुए उसे यह भी देखना है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को चोट न पहुंचे।
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