सर्वोच्च न्यायालय
– फोटो : पीटीआई
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, दिव्यांग के खिलने से हम सभी खिलेंगे
शीर्ष अदालत ने कहा है कि दिसग्राफिया से पीड़ित लोगों के लिए यह न तो कोई उदारता है और न ही विशेषाधिकार है। अदालत ने कहा कि ऐसे लोगों को राइटर की सुविधा देना वैधानिक नियम का अनुपालन है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि विकलांग व्यक्ति समाज में समानता और गरिमा के साथ जीवन जी सके।
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने केंद्र सरकार को तीन महीने के भीतर दिशा-निर्देश व नियम बना कर दिव्यांग छात्रों के सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में राइटर के साथ बैठने की व्यवस्था करने के लिए कहा है।
पीठ ने कहा है कि दिव्यांग व्यक्तियों के जीवन को प्रभावित करने वाले मामलों के बारे में निर्णय लेने में दिव्यांग व्यक्ति से परामर्श लिया जाना चाहिए। किसी भी सार्थक बदलाव में उनकी भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए।
शीर्ष अदालत ने सुविधा के संभावित दुरुपयोग के केंद्र सरकार के तर्क को खारिज करते हुए कहा, जब योग्य दिव्यांग व्यक्ति अपनी राह में आने वाली बाधाओं के कारण अपनी पूरी क्षमता का एहसास नहीं कर पाता हैं तो यह नुकसान हमारे समाज का है। हमें हरसंभव उनकी मदद करनी चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा है, उनके खिलने से हम सभी खिलते हैं। उनकी विफलता हमारी विफलता है।
शीर्ष अदालत ने यह फैसला एमबीबीएस विकास कुमार की याचिका पर दिया है। दिसग्राफिया से पीड़ित इस छात्र को यूपीएससी ने परीक्षा में राइटर देने से इनकार कर दिया था। विकास से पहले ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाया था। वहां से राहत मिलने के बाद उसने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। वहां भी उसे राहत नहीं मिली थी, जिसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
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