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- This IAS Couple Shashanka And Bhupesh Of Mizoram Raised Their Voice Against Malnutrition, Working Day And Night To Improve The Standard Of Education Through Their Efforts
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4 महीने पहले
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- शशांका के प्रयासों से कई स्कूलों में सुंदर बगीचे बने और कुपोषण का शिकार हुए बच्चों को आंगनवाड़ी में भरपेट खाना मिलने लगा
- इस कपल को 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस पर मिजोरम सरकार ने मुख्यमंत्री पुरस्कार से सम्मानित किया
जब आइएएस शशांका अला ने मिजोरम के लाईवंग्टलाई जिले में जिला मजिस्ट्रेट के रूप में पदभार संभाला, तो राजधानी आइजोल से लगभग 290 किलोमीटर दूर एक दूरदराज और पिछड़े इलाके में उन्होंने अपने बेटे को आंगनवाड़ी में भर्ती कराया।
वहां उन्होंने देखा कि उनका बेटा बिना पके चावल और दाल के पैकेट लेकर आंगनवाड़ी से घर लौटता था। शशांका द्वारा पूछने पर उसने बताया कि इस आंगनवाड़ी में बच्चों के लिए खाना नहीं बनता क्योंकि आंगनवाड़ी के लोग खाना बनाने के लिए सब्जियां और दाल नहीं खरीद सकते थे। यहां सब्जियां भी काफी महंगी हैं जिन्हें खरीदने में आंगनवाड़ी सहित गांव वाले असमर्थ थे।

एक अच्छा गार्डन बना डाला
ये बात सुनकर शशांका ने अपने बंगले के एक हिस्से को बड़े बगीचे में बदला और सब्जियां उगाने की शुरुआत की। इस तरह घर में एक अच्छा गार्डन तैयार हो गया। तभी शशांका के मन में ये विचार आया कि यहीं काम स्कूलों में भी किया जा सकता है।
इसी विचार के चलते उन्होंने स्कूलों में फल और सब्जियां उगाने की योजना बनाई। उनके प्रयासों से कई स्कूलों में सुंदर बगीचे बने और कुपोषण का शिकार हुए बच्चों को आंगनवाड़ी में भरपेट खाना मिलने लगा। यहां टीचर्स और बच्चे मिलकर सब्जियां और फल उगाते हैं।

सियाह के लिए काम करना शुरू किया
शशांका फिलहाल लेबर, इम्प्लॉयमेंट, स्किल डेवलपमेंट और इंटरप्रेन्योरशिप की एडिशनल सेक्रेटरी व स्टेट ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट की डायरेक्टर ऑफ स्टेट हैं। उनके पति भूपेश चौधरी पानीपत, हरियाणा में आईसीटी में एडिशनल सेक्रेटरी हैं।
उसके बाद इस कपल ने अपने पड़ोसी राज्य सियाह के लिए काम करना शुरू किया। सियाह एक ऐसा गांव है जहां पक्की सड़क न होने की वजह से बारिश के दिनों में बच्चों के लिए स्कूल जाना संभव नहीं होता।

स्पोर्ट्स मटेरियल सप्लाय किए
इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों की पढ़ाई पर होता है। इस गांव के सरकारी स्कूलों के बुनियादी ढांचे को सुधारने का काम भूपेश ने बखूबी किया है।
इस स्कूल में लायब्रेरी की सुविधा नहीं थी। यहां तक कि गेम्स का पीरियड भी नहीं होता था। भूपेश ने सीएसआर और अन्य फंड के माध्यम से यहां के 20 स्कूलों में स्पोर्ट्स मटेरियल सप्लाय किया। उन्होंने 12 स्मार्ट क्लासरूम की शुरुआत भी करवाई।

कुपोषण का स्तर कम हुआ
भूपेश और शशांका दोनों ही आईआईटी ग्रेजुएट हैं। इस कपल को 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस पर मिजोरम सरकार ने मुख्यमंत्री पुरस्कार से सम्मानित किया।
लाईवंग्टलाई में 35.3% अविकसित बच्चे , 21.3% कम वजन वाले और 5.9% गंभीर रूप से कुपोषित बच्चे थे जिनकी उम्र पांच साल से कम थी। इस कपल द्वारा चलाई गई परियोजना की बदौलत कुपोषण का स्तर अब 35% से 17.93% पर आया है।

बच्चों के रोल मॉडल बनना चाहते हैं
भूपेश कहते हैं- ”स्कूलों में जरूरी सुविधा उपलब्ध कराने के साथ ही ‘एडफिक्स’ का होना भी जरूरी था। एडफिक्स एक क्लाउड बेस्ड मोबाइल एप है। इसकी शुरुआत इसी साल जनवरी में विभिन्न स्कूलों में इस कपल द्वारा की गई। इससे पढ़ाई करने के दौरान विद्यार्थियों की कई मुश्किलें कम हुईं।
भूपेश और शशांका का सपना है कि ये बच्चे खूब पढ़ें और आगे चलकर देश का नाम रोशन करें। वे दोनों इन तमाम बच्चों के रोल मॉडल बनना चाहते हैं।
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